आध्यात्मिक डेस्क, न्यूज राइटर, 23 मार्च, 2024
होली से लेकर दिवाली तक, मकर संक्रांति से लेकर रक्षाबंधन तक, कितने ही पर्व हमारी परंपरा का जीता जागता उदाहरण माने जाते हैं।
इन्हीं पर्वों में से एक पर्व है होली का और इसके एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है। वास्तव में होलिका दहन हर साल देखते समय यह ख्याल आता है कि आखिर क्यों हर साल होलिका दहन किया जाता है और यह प्रथा सदियों से क्यों चली आ रही है।
हिंदू पंचांग के अनुसार होलिका दहन हर साल फाल्गुन महीने की पूर्णिमा तिथि के दिन किया जाता है। होलिका दहन के अगले दिन रंगों की होली मनाई जाती है। होली में रंग खेलने के साथ होलिका की अग्नि में सभी नकारात्मक शक्तियों का दहन किया होता है। आइए जानें होलिका दहन की रोचक कथा और इसे मनाने के कारणों के बारे में।
क्या है होलिका दहन की कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार एक समय की बात है जब हिरण्यकशिपु नाम का एक राजा था। वह अपने पुत्र प्रहलाद से सदैव असंतुष्ट रहता था और उसे पसंद नहीं करता था। इसका मुख्य कारण यह था कि प्रह्लाद भगवान विष्णु के परम भक्त थे और ये बात उनके पिता हिरण्यकश्यप को पसंद नहीं थी। हिरण्यकशिपु एक असुर था और वह भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानता था। वहीं भक्त प्रहलाद के मुख से हमेशा भगवान विष्णु का नाम निकलता था।
प्रहलाद की कोई भी बात उनके पिता को पसंद न थी। इसी कारण से हिरण्यकश्यप ने भक्त प्रह्लाद को मृत्यु दंड देने का मन बना लिया। हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र को मृत्यु दंड देने के भरसक प्रयास किए, लेकिन विष्णु जी का भक्त होने की वजह से उसके सभी प्रयास असफल सिद्ध हुए।
भगवान विष्णु हमेशा प्रहलाद की रक्षा करते थे। उस समय हिरण्यकश्यप को विचार आया कि क्यों न प्रह्लाद को मृत्यु दंड देने के लिए उसकी बुआ होलिका की सहायता ली जाए। होलिका को वरदान था कि वो कभी अग्नि में जल नहीं सकती है, इसी वजह से हिरण्यकशिपु ने पुत्र प्रहलाद को होलिका के साथ अग्नि में सौंप दिया। उस समय भी प्रभु ने अपनी माया दिखाई और होलिका को अग्नि में दहन करके प्रह्लाद को बचा लिया। उसी समय से होलिका दहन का प्रचलन शुरू हुआ और ऐसा माना जाने लगा कि होलिका की अग्नि में सभी बुराइयों का नाश हो जाता है।
कब से शुरू हुई होलिका दहन की परंपरा
ऐसा माना जाता है कि जिस दिन होलिका अग्नि में भस्म हुई थी उस दिन फाल्गुन महीने की पूर्णिमा तिथि थी, इसी वजह से आज भी फाल्गुन पूर्णिमा को महत्वपूर्ण माना जाता है और इस दिन होलिका दहन किया जाता है। मान्यता के अनुसार होलिका दहन प्रदोष काल में हुआ था, इसी वजह से आज भी होलिका प्रदोष काल से लेकर रात तक दहन की जाती है। होलिका दहन की अग्नि को बहुत पवित्र माना जाता है और यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
इस साल कब है होलिका दहन
हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल होलिका दहन 24 मार्च 2024, रविवार के दिन किया जाएगा। होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 24 मार्च की रात्रि 11 बजकर 13 मिनट से लेकर अगले दिन यानी 25 मार्च को रात 12 बजकर 27 मिनट तक रहेगा।
इस तरह से होलिका दहन की पूजा के लिए कुल अवधि 1 घंटा 14 मिनट तक रहेगा। यदि आप शुभ मुहूर्त में होलिका दहन करेंगे तो आपके लिए बहुत शुभ रहेगा और आपको इसका लाभ मिलेगा।